
एनसीआर में बढ़ता प्रदूषण आपकी सेहत को कैसे पहुंचा रहा है नुकसान?
संवाददाता
नई दिल्लीः राजधानी दिल्ली और एनसीआर में बेतहाशा बढ़ते प्रदूषण को कम करने का कोई ठोस उपाय सरकार के पास नहीं दिख रहा है. एनसीआर में पीएम-10 का स्तर 478 और पीएम-2.5 भी 154 तक रिकॉर्ड हो रहा है. जो खतरनाक हालात की ओर ईशारा कर रहे हैं. प्रदूषण की वजह से इन दिनों ये दो शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. दरअसल, पीएम-10 और पीएम 2.5 ही प्रदूषण फैलाने में सबसे बड़ा किरदार निभाते हैं. ये कण इतने छोटे होते हैं कि सांस के जरिए आसानी से हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और सेहत के दुश्मन बन जाते हैं.
आमतौर पर लोग इन कणों के बारे में नहीं जानते, लेकिन इससे बचाव के लिए इसे जानना बेहद जरूरी है. पीएम-2.5 का कण कितना छोटा होता है इसे जानने के लिए ऐसे समझिए कि एक आदमी का बाल लगभग 100 माइक्रोमीटर का होता है. इसकी चौड़ाई पर पीएम 2.5 के लगभग 40 कणों को रखा जा सकता है. आईए दोनों कणों के बारे में जानते हैं कि यह हमें कैसे नुकसान पहुंचाते हैं?
एम 10: पीएम 10 को पर्टिकुलेट मैटर कहते हैं. इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास होता है. इसमें धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं. पीएम 10 और 2.5 धूल, कंस्ट्रक्शन और कूड़ा व पराली जलाने से ज्यादा बढ़ता है.
पीएम 2.5: पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है. इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है. विजिबिलिटी का स्तर भी गिर जाता है.
कितना होना चाहिए पीएम-10 और 2.5
पीएम 10 का सामान्य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए.
पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है. इससे ज्यादा होने पर यह नुकसानदायक हो जाता
आंख, गले और फेफड़े की बढ़ती है तकलीफ
सांस लेते वक्त इन कणों को रोकने का हमारे शरीर में कोई सिस्टम नहीं है. ऐसे में पीएम 2.5 हमारे फेफड़ों में काफी भीतर तक पहुंचता है. पीएम 2.5 बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इससे आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है. खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है. लगातार संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है.
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